
ज़नाज़ा मेरा है जा रहा
चन्द लोग है शाना दिए
कोई बात कर रहा है
मेरी ज़िंदगी की बाबत
कोई अफ़सोस कर रहा है
मेरी जवान मरग पर
और
कोई तल्खी से कह रहा है
इंसान था वह कोई
उस ने तो ख़ुद को ही
मय मैं डुबो दिया था
मैं
चुपचाप
सुन रहा हूँ सब कुछ
चुप हूँ
मुद्दत से बोलने के बाद!
धड़कने खामोश है
मुद्दत से धड़कने के बाद!
पर
मेरी रूह
लोगों को देखती है
कोई बेबसी से रो रहा है!
कोई बेकसी से रो रहा है!
कोई गम खा के रो रहा है!
कोई मुस्करा के रो रहा है!
कोई हंसने को रो रहा है!
कोई महज़ रोने को रो रहा है!
रो नही रहा कोई मुझ पर
हर कोई ख़ुद पे रो रहा है!
मेरी रूह देखती है
तेरा उदास चेहरा
और मुस्करा रही है
यह सोच कर ऐ जालिम
जीते हुए न तुम
कभी मेरा ख़याल आया
क्या सोच के तू आज
मेरी मय्यत पे रो रहा है!
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