वो बचपन के स्कूल भी गए और वो भारी बस्ते भी गए !!
वो पुराने साथी भी गए, स्कूल के टेड़े मेढे रस्ते भी गए !!
पहले जब माँ डांटा करती थी, उसकी गोद में सो जाते थे ,
आज माँ ही नहीं है ज़िंदगी में ,बस हम बिलखते ही गए !!
ज़िंदगी की अनजानी राहों पर, जब से हम निकल पड़े ,
तब से मज़िल की तलाश में, बस खो कर फंसते ही गए !!
अब भी कभी तन्हाई में, यादों का इक हजूम सा आ जाता है,
तब हम गहरी उदासियों के घेरों में खुद बस कसते ही गए !!
अब ज़िंदगी की मंंजिल का तो कुछ आता पता नहीं है यारो,
इस पड़ाव पर रोना चाहते हुए भी, हम सिर्फ हँसते ही गए !!
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