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Thursday, May 8, 2008
नाराजगी
सूर्य की किरणें रेत पर छितराई होगी!
उस दिन न तुम से मीला था
तुम को जब मुझ से गिला था
मैं न आ पाया था जब के तुम आयी होगी !
शायद अब भी याद होगी वह शाम तुम को
जब कितने भेजे थे मैंने पैगाम तुम को
मुझे लगता हे तुम सब सुन कर बहत शरमाई होगी!
आज भी तेरे खतों की कतराई पडी है
तूं तो नही तेरी परछाई खडी है
अब तो तुम भूल चुकी होगी कसमें जो खाई होगी!
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2 comments:
दिन को दिन लिखे ओर गिला लिखे.....इससे आपकी कविता मे प्रवाह मे रूकावट आती है.....
Dr. Arya,
aap ke suggestion ke liye bahut bahut dhanyabad. Mian itne arse se India se door America me settle hoon so meri Hindi itnee achhi nahee aur Google me bhee hindi ke words jaise aane ki umeed hoti he hamesha nahee aatey.
Aap ka bahut bahut shukriya aur aagey se koshish karoonga ke diction bilkul sahi aaye aur aap jaise guni logo se guidance milti rahe to shayad likhne me aur nikhaar la paoonga.
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