मुझे तेरी फितरत देख कर रोना ही आ गया!
अब मुझे हर हाल मे खुश होना ही आ गया!
ज़रूरत नही हैं अब मुझे किसी के सहारे की,
अश्कों में ख़ुद अपने को डुबोना ही आ गया!
क्यों रोये आख़िर कोई मेरी दास्तान सुन कर,
अक्सर अपने हाल पर ख़ुद रोना ही आ गया!
शुक्रिया तेरा ऐ दोस्त तूने जीना सीखा दिया,
अब तो मुझे भी ग़मों में खोना ही आ गया!
वक्त-ऐ-हिज़र नही करूंगा मैं कोई भी शिकवा
खुशियों के हार मुझे अब पिरोना ही आ गया !
5 comments:
bahut badhiya! kya baat hai!
सुन्दर अति सुन्दर।
बधाई.
बढ़िया गजल लिखी आपने.
"वक्त-ऐ-हिज़र नही करूंगा मैं कोई भी शिकवा
खुशियों के हार मुझे अब पिरोना ही आ गया !"
अति सुंदर.
बढ़िया है, लिखते रहिये.
अल्पना जी, सुशील जी, बालकृशन जी व समीर जी,
आप सब का मेरी हिम्मत बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्याबाद. आप ऐसे ही मेरी कोशिश को अपने शब्दों से प्रेरित करते रहें
अशोक 'आशु''
Post a Comment