पूर्व दिशा में धीरे-धीरे सूरज की किरणे ज़मीन पर जैसे सोने का रस सा बखेर देती है..येही तो सुबह है! एक नए दिन की...एक नए जीवन की..सारा संसार इन सुनहरी किरणों से जैसे जगमगा सा उठता है...मंद मंद ठंडी बयार बहती है ..पेड़ों पर नए पत्ते और फूल खिलने लगते हैं..और बंद कलियाँ धीरे धीरे अपने घूघंट को खोल कर धीरे से अपना निवारण सुंदर चेहरा बाहर निकाल कर सूर्य देव को जैसे परनाम कर रही हो..भंव्रें आ कर कलियों के ऊपर मंडराने लगे हैं ...और गुन गुन की आवाज़ से एक नया संगीत वातावरण मी फैल्याए जा रहे है...रंग बिरंगी तित्ल्यों ने अपने सुंदर पंखों को खोल दिया और एक फूल से दूसरे फूल पर घूमने लगती है ..रंगों का एक अजीम सा नज़ारा पेश करती हैं ..पंछी भी अपनी चहक से एक मधुर सुरभी छेड़ कर अपने हिस्से का संगीत देने लगते है और एक पेड़ से दूसरे पेड़ की तरफ़ उड़आने बहरने लगते है...अपनी चोंच से वह कभी दाने और कभी बीज दबा कर घोंसलों की और जाते हैं यहाँ नन्हें नन्हें नए पैदा हुए पंछी ज़ोर ज़ोर से चरपने की अव्वाज़ करने लगते हैं...उनमे से सहसा एक पंछी की चोंच से बीज गिर कर धरती पर गिर जाता है॥
आकाश में बादल उमड़ने लगते हैं ..और देखते देखते उन में से अमृत की बूंदे छलकने लगती हैं..मिटटी को जैसे एक नया जीवन मिल जाता है ...बूँद तीर की तरह से उस बीज पर भी जा गिरती है..उसे धरती की कोंख में दूर तक पहुँचा देती है ...दिन बीतते हैं..अन्दर उमस बदती रहती है..गर्मी से बीज फूट पड़ता है..और फ़िर मिटटी की तह फाड़ कर अंकुर बाहर झांकने लगता हैं ...धीरे धीरे वह बढता हैं और एक दिन पौदा बन जाता है ..बहार ..उसे पाल पोश कर और बड़ा बना देती है ..कालांतर में वोही पौदा बढ़ कर पेड़ बन जाता है॥
बदलते मौसम इसे सजाती हैं संवारती हैं ..इस पर भी एक दिन फूल खिलने लगते हैं ...और कोय्लें उठ पर बैठ कर गीत गाने लगती हैं..और फ़िर पत्झ्ढ़ आने पर इस पर वीरानी छा जाती है..पत्ते झ्ढ़ कर गिरने लगते हैं ..सिर्फ़ एक ठूंठ रह जाता हैं...पर पेड़ कभी निराश नही होता ...पत्झ्ढ़ को वह जीवन का अंत नही समझता...उमीदों पर जीता रहता है यह जानते हुए भी के एक दिन उसे भी गिर कर ज़मीन में ही दफ़न हो जाना है..उम्मीद के दामन से लिप्त रहता हैं ..एक दिन फ़िर से बहार आती है और वह फ़िर हरा भरा हो जाता है...
यही तो जीवन है...
1 comment:
सच कहा-यही तो जीवन है. बहुत बढ़िया लिखा है.
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