घोडा घास नही खायेगा तो क्या खायेगा! अक्सर सोचता हूँ किसी ने ऐसा क्यों कहा है भई, अरे यह भी कोई कहने की बात है भला। अब घोडे ने घास नही खानी तो मत खाए कहने वाले के बाप का भला क्या जाता है। कोई उस कहने वाले भाई साहिब से यह पूछे अरे मीया आप को क्या पड़ी है बेचारे घोडे को बेकार में परेशान किया जा रहे हो। क्या इंसान के बारे में लिखने को कुछ कम पड़ गया था जो अब आप गधे घोडे पर उतर आए है। सच है, कई लोगो के पास इतना जैसे वक़त रहता है के जो इस तरह की फालतू की बातों में अपना और पढने वालों को वक़त जाया करते रहते है ।
अब जब बात वक़त पर ही आ गयी है, अरे भाई अब क्यों गधे घोडे की इस बहस को पढ़ कर अपना टाईम फालतू जाया किए जाए आइये हम हमारी बात करते हैं। असल में बात यह है के मैंने इस लिए घोडे का ज़िक्र किया था कयोंकी यह बात तो इंसान पर भी वैसे लागू होती है। देखीये मैं आप को समझाता हूँ। अब आदमी इतना काम करता है, दिन भर के काम से दिमाग खाली हो जाता है और कमर दोहरी हो जाती है तो क्या ऐसा महसूस नही होता की हम भी एक तरह से ठीक उस गधे या घोडे की मानिंद है जो थोड़ा घास पाने की लालच में लगे हुए है। आप सुनिए ना अभी जाईऐ नही। अब क्या है ना के इंसान का घास कुछ अलग तरह का होता है, उस मे क्या क्या शामिल कर सकते है ज़रा आप इस का अंदाजा लगाये। कई को तो घास के रूप में रोटी, दाल चावल चाहिए बस हो गया , और जो दूसरे तरह के घोडे...अर्र्रर्र मुआफी चाहता हूँ ..इंसान हैं उन को तो खाने मे छतीश तरह के पदार्थ चाहिए ..और पानी की जगह पीने के लिए शराब भी चाहिए ..आप गौर कीजिये भाई साहिब यहाँ तो घास की परिभाषा ही बदल गयी है ..मतलब यह है के ज़रूरियात के मुआमले में आदमी गधे और घोडे से कई कदम आगे है।
कहते है इंसान ने बहुत तरक्की कर ली है..अरे मैंने कहा कैसे तरक्की ..यह सब तो अलग अलग तरह के घास खाने के लिए किया जा रहा है। अगर इन सब के पीछे मोटोवेशन सिर्फ़ अच्छे घास खाने का ही है तो लानत है हम पर, हमारे और घोडे या गधे में क्या फर्क रहा फ़िर ! ज़रूरत है के हम इस घास के चक्कर से निकल कर इंसानियत के बारे में सोच कर कुछ अच्छा काम करें. मेहनत करें तो सिर्फ़ अलग अलग तरह के घास के लिए नही बल्की इस लिए के कैसे हम एक दूसरे की मदद कर सके और कैसे अपने अलावा औरों की जिंदगियों को बेहतर बना सकें उस के लिय करें।
अगर ऐसा नही कर सकते तो हमारे और गधे घोडे में कोई फरक नही। बात मानिए और इन सब से ऊपर उठ कर इंसान बने। अगर आप ने यहाँ तक पढ़ा तो आप का बहुत बहुत शुक्रिया हो सकता आप भी अपने को इन सब से ऊपर उठा कर सोचेंगे।
2 comments:
पढ़ा तो पूरा है मित्र. अब अपने को इन सब से उपर उठाने का भीषण यत्न कर रहा हूँ, भार कुछ ज्यादा ही है. :)
समीर जी,
आप ने इतना सवर दिखाया के आप ने इस कोशिश को पढ़ा तो , उस के लिए अत्यंत धन्यबाद!
- आशु
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