
अक्सर अनजाने से याद आ जाती है तुम्हारी बातें!
आज भी मेरे दिल को सहला जाती है तुम्हारी बातें!
तुम अपनी चाहत और तमन्नाओं में खो गए,
पर मेरे टूटे दिल को बहला जाती है तुम्हारी बातें!
आज भी उन्ह पुरानी राहों से जब गुजरता हूँ,
मन में यादों के दीप जला जाती है तुम्हारी बातें!
बातों के सिलसिले थे जब दिल से दिल मिले थे,
अब खामोशी में मुझे रूला जाती है तुम्हारी बातें!
अब तो अकेलेपन में खोया खोया सा रहता हूँ,
बेबस आशायों को तड़पा जाती है तुम्हारी बातें!
मेरी तन्हाई मेरे एहसास की वह रंगीन दुनिया थी,
आज भी ज़ख्मों को सहला जाती है तुम्हारी बातें!
फ़िर उमर के चौराहे पर कभी मिली तो पूछूंगा ,
क्या तुम्हे भी कभी याद आ जाती हैं तुम्हारी बातें!
2 comments:
फ़िर उमर के चौराहे पर कभी मिली तो पूछोंगा,
क्या तुम्हे भी कभी याद आ जाती हैं तुम्हारी बातें!
वाह, बहुत सुन्दर रचना
***राजीव रंजन प्रसाद
Rajeev,
Aap ka bahut bahut dhanyabad, bus aap jaise logo ke aise alfaz mujhe likhne ke liye utsahit karte hai.
Bahu Bahut Shukriya aap ka
Ashoo
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