
शाने पे तेरे जुल्फों के घन गीरे हुए
ऐसे मैं जैसे अम्बर पे बादल घीरे हुए
होठों पर मुस्कराहट है फूलों सी चंचल
आँखें हे जैसे जाम हो रस घोलते हुए
तेरे रुखसार पर जो एक काला सा तील है
वोही है ख़ुद से मुझ को गाफील किए हुए
होंठ हे ऐसे के जैसे खिलता हुआ गुलाब
हंसने की अदा है दील मेरा लीये हुए
आशु कीसी का दोष नहीं जो हो जाए घायल
वह लगते हा हाथों मैं तीरों - कमान लीये हुए
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