तुम नहीं हो बताओ अब कौन से घर जाऊं मैं!!
मन करता है बस जिंदा रह कर मर जाऊं मैं!!
तुम्हारे जाने के बाद सब सूना सा लगता है,
बात करने को नहीं, मन है चुप कर जाऊं मैं!!
सबसे बातें मुलाकातें, बस बेगानी सी लगती है,
तुमे मिलने का मन हो, कौन से घर जाऊं मैं!!
कभी कभी हर चेहरा माँ तेरे जैसा लगता हैं ,
अब तुम्हे ढूंढने को कहाँ और किधर जाऊं मैं!!
क्यों इतनी अनजान, और निर्मोही हो गई माँ,
तेरी यादों का दीया किस तरह बुझा पाऊँ मैं!!
अब तो बस एक ही मेरी इच्छा है पूरी कर देना,
अगले जन्म मैं तेरा ही बेटा आ कर बन जाऊं मैं!
1 comment:
ओर कहीं पर नजर न आया,
माँ को देखा ईश्वर पाया।
सुन्दर रचना, बधाई स्वीकार करें।
कभी मेरे ब्लॉग पर आकर माँ पर कविता पढ़ कर
प्रतिक्रिया दें।
http://dineshkranti.blogspot.com/
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