Friday, November 18, 2011

अब !!


अब खुद से बात कर के घबरा जाते है हम!
दिल की बात दिल से न कह पाते है हम!!

तन्हाईयों के जंगल में खो कर अक्सर,
अपनी ही परछाई से डर जाते है हम !!

तेरे जैसा कोई नहीं हैं साथी या संगी मेरा,
जिंदगी की राहों में बस कसमसाते है हम !!

या खुदा यह इश्क का कैसा है इम्तिहा,
अकेले में जुदाई की ठोकरें खाते है हम !!

ऐ काश हमें पुकार लो इक बार तुम,
तेरी कसम सब छोड़ के चले आते है हम !!

'आशु' ख़ुशी में भी रोने का ही मन करता है,
तेरी याद में इस दिल को तडपाते है हम !!

7 comments:

Bharat Bhushan said...

तन्हाईयों के जंगल में खो कर अक्सर,
अपने माज़ी से घबरा जाते है हम !!
भावनाओं की अभिव्यक्ति बहुत सुंदर बन पड़ी है.

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह!!!
बहुत खूबसूरत गज़ल.....

Saras said...

रेत पर उकेरना कल्पना ...जैसे खुद से ही गुफ्तगू करना .....सुन्दर अभिव्यक्ति!

मेरा मन पंछी सा said...

वाह |||
बहुत ही सुन्दर
भाव पूर्ण रचना...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरती से काही ही गजल ...

कविता रावत said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..

आशु said...

भूषण जी ,expression, सरस जी ,संगीता जी व् कविता जी ,

होंसला बढाने के लिए ..आप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद..

यशवंत जी,
अपने ब्लॉग पर मेरी रचना को जगह देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया..

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