अब खुद से बात कर के घबरा जाते है हम!
दिल की बात दिल से न कह पाते है हम!!
तन्हाईयों के जंगल में खो कर अक्सर,
अपनी ही परछाई से डर जाते है हम !!
तेरे जैसा कोई नहीं हैं साथी या संगी मेरा,
जिंदगी की राहों में बस कसमसाते है हम !!
या खुदा यह इश्क का कैसा है इम्तिहा,
अकेले में जुदाई की ठोकरें खाते है हम !!
ऐ काश हमें पुकार लो इक बार तुम,
तेरी कसम सब छोड़ के चले आते है हम !!
'आशु' ख़ुशी में भी रोने का ही मन करता है,
तेरी याद में इस दिल को तडपाते है हम !!
7 comments:
तन्हाईयों के जंगल में खो कर अक्सर,
अपने माज़ी से घबरा जाते है हम !!
भावनाओं की अभिव्यक्ति बहुत सुंदर बन पड़ी है.
वाह!!!
बहुत खूबसूरत गज़ल.....
रेत पर उकेरना कल्पना ...जैसे खुद से ही गुफ्तगू करना .....सुन्दर अभिव्यक्ति!
वाह |||
बहुत ही सुन्दर
भाव पूर्ण रचना...
खूबसूरती से काही ही गजल ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..
भूषण जी ,expression, सरस जी ,संगीता जी व् कविता जी ,
होंसला बढाने के लिए ..आप सभी का बहुत बहुत धन्यबाद..
यशवंत जी,
अपने ब्लॉग पर मेरी रचना को जगह देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया..
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