Monday, November 15, 2010

तेरी परछाई....

तूं नहीं हैं मगर तेरी परछाई खड़ी है!
बात कुछ नहीं फिर भी बात बड़ी है !!

खामोश सी है यह,  बात भी नहीं करती,
नाराज़ भी है यह , और मुझ से लड़ी है !!

घंटों पहरों मुझ से बातें करती है,
यादें जिंदा रखने की अजीब कड़ी है!!

बहुत ही तेज़ रफ़्तार है जिंदगी की,
यह बीच में बन के इक दीवार खड़ी है !!

प्यार बदलाव नही अधिकार मांगे है
तेरी याद इस दिल में अभी तक गडी है!!

तुम यहाँ नहीं, पर यह तो साथ रही है,
तुम से बढ़ कर तेरी परछाई बड़ी है!!

2 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

तूं नहीं हैं मगर तेरी परछाई खड़ी है!
बात कुछ नहीं फिर भी ये बात बड़ी है !------------सच कहा आपने आशु जी,किसी के पास होने का अहसास---- बहुत बड़ी बात होती है।---बेहतरीन रचना।

दिगम्बर नासवा said...

तुम तो यहाँ नहीं हों, हाँ यह मेरे साथ ही रही है,
तुम से बढ़ कर मेरे लिए तेरी परछाई ही बड़ी है! ..

vaah gazab ki baat kah di aapne ... sach hai kam se kam ye parchai to saath nahi chodti .. uimr bhar saath deti hsai ...

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