Wednesday, May 4, 2011

नन्द गाँव में कान्हा के प्रेम में गोपी की गुहार ...




लो मरोरो मोरी बैंया मोरे कन्हैया मैं तो तेरी दासी रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों, और मैं तो तेरे ही रंग राची रे!

तोरी छबी बसी मोरे मन आँगन, प्यारे भोले सांवरिया,
तुम्हे देखूँ तो कछु सूजे नाही, मैं तो हों जाऊं बाँवरिया,
मत तरसा अब तो आ कान्हा, मैं तोरे दरस की प्यासी रे !
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों....

सुध बुध मैं अपनी भूल जाऊं, सुन तोरी बंसी की तान रे,
तुम क्यों निष्ठुर हों गए कान्हा, मोरी हालत से अनजान रे,
रिम झिम बरसे मोरे नैनवा, जैसे हों कोई नदिया सी रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों.....

माखन के मटके भरे है लटके, तुम माखन क्यों नहीं खाते,
अपने ग्वाल बाल के संग, तुम मेरे घर पर क्यों नहीं आते,
कान्हा तेरे दरस की लालसा मुझे रहती है तरसाती रे!
तुम्ही तो मेरे प्रीतम हों..

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