सुदर्शन फाकिर साहिब बहुत ज़हीन शायर रहे है ! उन की ग़ज़लों में कमाल की गहरायी रहती है! पेश है उन की लिखी यह ग़ज़ल जो मुझे बेहद पसंद है! आप इस ग़ज़ल के एक एक शेयर पर गौर ज़रूर फरमाए -
इश्क में गैरत -ए -जज़बात ने रोने न दिया!
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया !!
आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब,
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया !!
रोने वालों से कह दो उनका भी रोना रोलें,
जिनको मजबूरी -ए -हालात ने रोने न दिया !!
तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था ,
तंगी -ए -वक़्त -ए -मुलाक़ात ने रोने न दिया !!
एक दो रोज़ का सदमा हो तो रोलें 'फाकिर'
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया !!
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