मेरा यह नेचुर के ऊपर एक ग़ज़ल लिखने का पहला प्रयासः है। उम्मीद करता हूँ आप को पसंद आएगी...
आज सुबह जब मेरा बाग़-ऐ-गुल से गुजर हुआ।
कुदरत के करिश्मे का दिल पे अज़ब असर हुआ।
हलकी फ़ैली थी धूप जैसे सफेद चादर का हो रूप,
ठंडी हवा चल रही थी जिस से बदन शरर शरर हुआ।
कहीं पर था गेंदा तो कहीं सूरजमुखी खिला हुआ,
हसीं कलीयों की खुश्बू से था गोशा गोशा तर हुआ।
मस्त भँवरें मंडरा रहे थे, फूलों का रस चुरा रहे थे,
औस की बूंदों से था घास का पत्ता पत्ता सरोवर हुआ।
पंछी चहचहा रहे थे , नए दिन के गीत गा रहे थे,
अज़ब वाताबरण था, अजीम खुदा का मंज़र हुआ।
एक असीम सी शांती थी, लगती स्वर्ग के भांती थी,
खूबसूरत लग रही थी दुनिया जैसे खुदा का घर हुआ।
2 comments:
बहुत सुंदर प्रयास है...वाह...
नीरज
नीरज जी,
मेरा होंसला बढ़ाने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यबाद.
आशु
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