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शाम के झुट्पते में
जब सूरज डूबता है
सागर किनारे बैठा मैं,
उस को निहारा करता हूँ
जिस की सुनहरी किरणे
रेत पर छिटक रही है
तो लगता है मुझ को ऐसे
जैसे एक मिलन हो रहा है
जा हो रही हो जुदाई
रात और दिन की
रेत पर बैठा मैं
कमज़ोर उँगलियों से
तेरा नाम लिख देता हूँ
और फ़िर मिटा देता हूँ
कौन जाने
तेरा मेरा भी
मिलन है या जुदाई है?
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