पुराने बीते दिनों की
एक पेड़ के नीचे
जागा सा सोया सा
याद करने लगा
बीते लम्हों को
तभी एक पत्ता
पीला सा मुरझाया सा
डाली से टूट कर
मेरी गोद में आ गिरता है
और याद दिला देता है
कुछ मधुर क्षणों की
जब हम तुम
संग बैठा करते थे
हम हँसते थे
और कभी रो देते थे
और आज
तुम नही हो
और ना ही इस पेड़ पे
वह सब्ज़ पत्ते हैं
अब तो बस सूखे
मुरझाये पत्ते
मेरी यादों की तरह
नीरह से टूट रहे हैं
मेरे आसतितव के बृक्ष से !!
3 comments:
wah..bahut khoob
likhtey rahey hamesha
Hi Keerti,
Thanks for your beautiful comments. I sincerely appreciate them as only an heart with similar thoughts can understand.
Regards,
Ashoo
Thank yyou for this
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