जिस पथ पर मै निकला था उस की राह बहुत कठिन  है
सोचा न था क्या खो दूँगा, जो हुआ सोच से  भिन्न है !
कुछ दिल के तार टूटे है, कुछ तुम   बगाने हो गए
जो सपने हम ने देखे थे,  सब धुंद में कहीं खो गए
अनजान राहों पर मिले, विपरीत दीशा की और बड़ते लोग
दिल की भाषा जो न समझे ऐसे अनपढ़ अनसमझे लोग
अब तक चलता ही रहा हूँ, रुकने और ठह्रने का नाम नहीं
लड़खडाने से क्या हासिल होगा, मंजिल दूर है आराम नहीं
मैं अपनी धुन में चलता ही गया तुम अपनी दुनिया में खो गए
वक्त  का फासला बढता ही गया, हम तुम अकेले से हो गए
कभी मिल बैठेंगे  सोचेंगे, क्यों ऐसे हुआ जो न होना था
शायद रो कर भी हंस  देंगे, हम खो चुके जो न खोना था
अब तो आ जाओ साहस  कर के, बचे  लम्हों को जी ले हम
शिकवों से कुछ ना हासिल होगा, टुकडे  दील के सी ले हम
 
 
1 comment:
अच्छा लिखा है।
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