ओ पंछी! यह संदेशवा दे दो जब गुजरो पी की नगरिया।
मोहे पी की याद सताए, मोरी छलक जाए है गगरिया।
वोह कहते थे के आयेंगे अब के सावन में।
एक अगन लगती जाए मोरे तन बदन में।
लगन में उनकी मीठा सा दरद है मन में।
धड़क जाए जियरा मोरा जब चमके वैरी बिजुरिया।
ओ पंछी ...........................................................
नैनन में मोरे अन्सुयन की धारा है बह रही।
बिरहा में उनकी तड़प तड़प कर मैं हूँ मर रही।
आँखें थक गयी राह तक तक आए न वोह अभी।
झनक झनक झन झनक झनक झन मोरी छनक जाए पायलिया
ओ पंछी..............................................................
सूर्य असत हो जब भी संध्या ढलती है।
दिल में उनकी याद रह रह के पलती है।
उन बिन जीवन सूना लागे तन्हाई डसती है।
क्या कहूं तुम्हे ओ पंछी? क्या बीते बिन सांवरिया?
ओ पंछी .................................................................
2 comments:
bahut khub sundar ehsaas
जब भी सूर्य असत हो कर संध्या ढलती है।
रह रह कर मेरे दिल में उनकी याद पलती है।
उन बिन जीवन सूना लागे तन्हाई डसती है।
बिरहिन की व्यथा कहती बहुत सुंदर रचना....
नीरज
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