Thursday, December 17, 2009

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

मैं निदा फाजली साहिब की ग़ज़लों का बहुत शौक़ीन हूँ और बहुत प्रभाभित हूँ उन के सोचने की गहराई से व् उन के अंदाज़-ऐ-बयाँ से व् उन के नजरियों से। उनकी लिखी यह ग़ज़ल मेरे दिल के बहुत अज़ीज़ है इस लिए मैं आप के साथ यह share करना चाहता हूँ । चित्रा सिंह जी आवाज़ ने इस ग़ज़ल को गा कर ओर भी चार चाँद लगा दिए ओर यह ग़ज़ल उन की बहुत ही बेहतरीन गाई हुई चुनिन्दा ग़ज़लों में से एक है। कुछ शेयर उनकी गयी हुई ग़ज़ल में नहीं है।

इसे सुन कर मुझे अपनी जिंदगी का अब तक का भारत से अमेरिका आने का और झूझने के सफ़र का हर लम्हा एक फिल्म की तरह से याद आ जाता है। उम्मीद करता हूँ आप सब को भी यह ग़ज़ल ज़रूर पसंद आएगी: 


सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो ।
सभी हें भीड़ में तुम भी जो निकल सको तो चलो ॥

इधर उधर कई मंजिल हें चल सको तो चलो ।
बने बनाए हें सांचे जो ढल सको तो चलो ॥

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं ,
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो ॥

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता ,
मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो ॥

यही है ज़िन्दगी कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो ॥

हर इक सफ़र को ही महाफूस रास्तों की तलाश ,
हिफज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो ॥

कहीं नहीं कोई सूरज , धुंआ धुंआ ही फिजा ,
खुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो ॥

- निदा फाजली


10 comments:

पूनम श्रीवास्तव said...

निदा फ़ाजली साहब की गजल पढ़वाने के लिये हार्दिक आभार----।
पूनम

Apanatva said...

बहुत सुंदर रचना
चंद उम्मीदे .......... के लिए chnd टाइप करना पड़ता है .aapke soujany se ek acchee gazal padane ka avasar mila .

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

निदा फ़ाजली साहब की इतनी खूबसूरत गजल ---प्रकाशित करने के लिये हार्दिक धन्यवाद्।
हेमन्त कुमार

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत अच्छा किया आपने निदा फाजली की गज़ल याद दिला दी।
यह गज़ल मुझे भी कभी याद थी।
बहुत कठिन है सफर जो चल सको तो चलो
इस मिसरे से भी शायद कोई शेर था याद नहीं आ रहा...
धन्यवाद

आशु said...

आप सभी का बहुत स्वागत है, और अच्छा लगा की मेरी तरह आप ने भी फाजली साहिब की ग़ज़ल को पसंद किया है. ऐसे अच्छे शायरों को पढ़ कर तो यही लगता है की हमे तो अभी बहुत कुछ जानना है सीखना है, बहुत नौसिखिये है हम.

अपनी पसंद मुझ से सांझी करने के लिए आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया.

आशु

Pawan Kumar said...

निदा साहब के क्या कहने..................वैसे ये ग़ज़ल मुझे भी पसंद है मगर कई दिनों के बाद इस ग़ज़ल को फिर से पढना एक नया एहसास दे गया...निदा साहब ने क्या खूब कहा है.....
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं ,
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो ॥
अच्छी पोस्ट की आपको बहुत बहुत बधाई.

योगेन्द्र मौदगिल said...

Behtreen Prastuti hai Bhai....Sadhuwaad..

दिगम्बर नासवा said...

शुक्रिया इस खूबसूरत ग़ज़ल को पढ़वाने का ...... मज़ा आ गया .......

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत अच्छी रचना
बहुत -२ आभार

sandhyagupta said...

Nav varsh ki dher sari shubkamnayen.

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