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Friday, November 14, 2008
बहाना नहीं पर...
बहाना नही पर रोने का मन हैं
कुछ बेवफा साथियों को याद कर के
टूटे दिल के लिए एक फरयाद कर के
यह देखना चाहता हूँ,
दिल के किस कोने में जलन हैं
बहाना नही रोने का मन हैं!
रह रह कर कंठ रूंध कर भर आता हैं!
दिल उछल कर कंठ में अटक जाता हैं!
ना जाने दिल के किस कोने में,
मेरे बिरहा की अगन हैं!
बहाना नही रोने का मन हैं!
अब तो बस सहा जाता नही!
मन का दुःख कहा जाता नही!
ज़र्ज़र सा हुआ मेरा तन मन,
दुखी कितना जीवन हैं!
बहाना नही रोने का मन हैं!
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