Wednesday, March 30, 2016

बिरहा गीत

 

सांवरे तोहे मन बिसरा ना पाये!

हर पल मोहे तोरी याद सताए!


तड़प बिलख मोरी अँखियाँ बरसे,

दिन रैन तेरे दर्श को तरसे,

तुम बिन कछु भी ना सुहाए!


मन की लगी को कौन बुझाए

अब बिगडी को कौन बनाये,

मोरी अँखियाँ बह बह जाये !


पेड़, पौदे  सब तो वही है,

तेरा बिना कछु लागे न सही है,

कछु ना मोरे मन को भाये !

 

कारी अंखियों में कजरा लगा के,

राह तकूँ तोरी  दीया जला के,

याद इतना भी कोई ना आये!

 

जब से हुए तुम दूर सांवरे , 

नैना हुए तेरे दर्श को बाँवरे ,

सोच सोच मोरा मन घबराये !

4 comments:

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर विरह गीत ... सांवरे की विरह में तो हर कोई पागल है ...

जमशेद आज़मी said...

दिल को छू जाने वाला बिरहा गीत। सांवरिया की याद में गोपियां कितनी उदास हो जाती हैं। यह आपके गीत से साफ झलक रहा है। बहुत खूब और बहुत ही सुंदर।

Madhulika Patel said...

सुंदर गीत ।

Unknown said...

बेहतरीन..

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