Friday, November 12, 2010

दबे पांव

 इक दिन तुम हलके से, दबे पांव,
मेरी जिंदगी में फिर से आ जाओ !
मेरी बांहों में, मेरी धडकनों में,
मेरी सांसो में फिर से समा जाओ !!

छोड़ दो दुनिया की सारी रस्मे,
तोड़ दो यह रिश्तों की दीवारें,
आ जाओ अब आ भी जाओ,
फिर से प्यार की कस्में निभा जाओ !!

मेरी जिंदगी की सौगात हों तुम,
मेरे लिए एक कायनात हों तुम,
गुजर जायेगा यह मुश्किल सफर,
अगर तुम मेरी बाहों मे आ जाओ !!

बडी मुश्किल से मिलते हैं दो दिल, 
मिलते है तो मिल जाती है मंजिल ,
आ भी जाओ तुम मेरी जिंदगी में अब,
अपने प्यार की  नदिया बहा जाओ!!

अजीब होती है ग़म-ए-मुहब्बत की रस्मे,
कुछ भी नहीं रहता है इस में अपने बस में,
जो हुआ उसे भुला, चली आओ चली आओ
मेरी दुनिया मेरे  घर को फिर से सजा जाओ !!

2 comments:

निर्मला कपिला said...

इतने दिल से लिखा है तो फरियाद जरूर सुनी जायेगी। शुभकामनायें।

पूनम श्रीवास्तव said...

आशु जी,बहुत भावनात्मक और प्रभावशाली रचना---हार्दिक शुभकामनायें।

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