Monday, December 14, 2009

सुबह हो रही है...

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सुबह का समय है, ठंडी बयार चल रही है। 

पंछी चहचहा रहे है, रसीले गीत गा रहे है। 

 

सूरज निकल रहा है, किरणे फैला रहा है। 

चारो तरफ़ जैसे, इक जादू सा छा रहा है। 

 

मन्दिर में कहीं पुजारी, घंटी बजा रहा है। 

मस्जिद में कहीं मुल्ला, खुदा को बुला रहा है। 


गुरद्वारे में सुरीला रागी, शब्द कीर्तन गा रहा है। 

मुर्गा भी गर्दन उठाये, बांग दे सुबह को बुला रहा है। 

 

बच्चा उठाये बस्ता, स्कूल की ओर जा रहा है। 

किसान बैल ले कर, खेतों को जा रहा है। 

 

कंधे पर है हल, सर टोकरा ले जा रहा है। 

बैलों के गले में लटका इक साज बज रहा है। 

 

इन सब नजारों से, मुझे ऐसा लग रहा है। 

जैसे खुदा ज़मीन पर, ख़ुद आप आ रहा है।

4 comments:

alka mishra said...

बचा उठाए बस्ता ,------बच्चा उठाए बस्ता
इन सब नज़रों से ------इन सब नज़ारों से

कविता बड़ी प्यारी सी बन पड़ी है ,ये दो शब्द अर्थ का अनर्थ करते दिख रहे थे ,शायद ये प्रिंटिंग मिस्टेक हो गया है ,अनुरोध है कि कृपया सुधार लें ,ताकि कविता और ज्यादा खिल उठे

आशु said...

अलका जी,

प्रिंटिंग की गलती सुधारने के लिए आप का बहुत बहुत शुक्रिया. मेरी ख़राब आदत यह है के मैं कविता रोमन इंग्लिश में लिख कर उसे हिंदी में जब कन्वर्ट करता हूँ तो कई बार सभी शब्द ठीक से नहीं आते और मैं भी उन्हें शुद्ध करना भूल जाता हूँ. उम्मीद करता है आप ऐसे ही कोई भी त्रुटियाँ हो तो उम्हे शुद्ध करने में ज़रूर मदद करेंगी

आप का बहुत बहुत शुक्रिया!!

आशु

KAILASH MOHANKAR said...

chalo aaj hum aapaki gali mein bhi aa gaye.
सफ़ा-ए-दहर पर लिखी राज़ की तहरीर हूं मैं
हर कोई पढ नही सकता जो लिखा है मुझमें

आशु said...

कैलाश जी ,
बहुत खूब और बहुत कुछ लिख दिया है आप ने शेयर की दो लाइनों में भी ...

शुक्रिया ...उम्मीद हैं अब आप का इस ग़ली में आना जाना लगा रहेगा...

आशु

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