Monday, November 9, 2009

मयकदे में...

कल जब मयकदे में जाम उठाया तो उछल गया
तेरा नाम सुना तो आँख से एक अंशू निकल गया

सुना मैंने, कहता था कोई, या खुदा वो सच न हो
के तेरा दिल मेरे अपने ही रकीब पर फिसल गया

या खुदा इस बात ने किया परेशान रात भर मुझे
कैसे तुम मुझे भूल गयी क्यों तेरा दिल बदल गया

अब किस को दूँ इल्जाम मैं दिल की बर्बादी का
आतिश में पांव जो रखा था जलना था सो जल गया

वाह क्या वफ़ा है, क्या सिला है यह वफ़ा निभाने का
शमा का तो नूर बढ़ा पर परवाना तो जल गया

3 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

अब किस को दूँ इल्जाम मैं दिल की बर्बादी का
आतिश में पांव जो रखा था जलना था सो जल गया

वाह क्या वफ़ा है, क्या सिला है यह वफ़ा निभाने का
शमा का तो नूर बढ़ा पर परवाना तो जल गया

आशू जी,
सबसे पहले तो आपको इस बात की शुभकामनायें कि आप नेट पर वापस आने लगे।
और गजल तो कमाल की है …हर शेर उम्दा है।
हेमन्त कुमार

पूनम श्रीवास्तव said...

Ashu ji,
bahut dinon ke bad ap kee rachnayen padhane ko mileen--achchhaa laga.is gajal men bahut khubasuurat sher hain.hardik badhai.
Poonam

आशु said...

हेमन्त व पूनम जी,

यह आप जैसे कद्र्दानो क प्यार है जो मेरे जैसे नकाबिल को लिख्नते रेहने को मझ्बूर कर देता है और कि जो ज़ीन्दगी की तल्खियोन से निकाल कर मुझे भावनाओं के इन्दरधुंश मे कुच्ह देर के लिये गुम कर देता है। बस आप मुझे होसल़ा देते रहे।

आशू

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