Wednesday, December 10, 2008

चाय वाली दीदी - भाग २

जिस दिन मिस्सी दीदी ट्रान्सफर हो कर आयी हमारे पड़ोसी अमर नाथ की पत्नी जिन्हें मैं मौसी कह कर बुलाता था, वो मेरे बीजी के पास आयी और बोली "अरी बहिन इब तो म्हारे मुहल्ले में यह क्रिस्तिअनी भी आ गयी है, लेकिन क्या बताऊं गाल तो उस के ऐसे गोरे हैं के पूछो मत।"

बीजी ने कहा " अरे यह क्रिस्चियन लोग तो सभी गोरे ही होते है। हम ने क्या लेना देना है?"

" अरी नहीं, जब तुम देखोगी तबी थने पता चलेगा के वो ऐसी वैसी मैम नाही, घुटनों तक का फ्राक पहन रखो है। मोहे तो लाज आवे ऐसन पहरावे को देख कर। ना जाने कैसी बेसरम है जो मर्दों के बीच टांग पे टांग रख कर चाय पीती है यह?"

लगता था मौसी जैसे काफी परभावित थी उस से। मैं भी बीजी के पास बैठा सारी बातें सुन रहा था और मेरे मन में भी मिस्सी दीदी के बारे में जानने की उत्सुकता पैदा हो गयी थी। मैंने पूछा, " फ़िर क्या हुआ मौसी?"

मेरी और अब तक किसी का ध्यान ही नहीं था। मौसी ने चौक कर मेरी और देख कर कहा, " हाय दैया, तूं म्हारी सब बातें सुन रहा था? शैतान कहीं का। सारी बातों में कान देता है?"

अब तो मेरी उत्सुकता और भी बाद गयी। मैंने पूछा, " बताओ न मौसी और क्या देखा?"

पर तब तक तो मौसी बीजी से कुछ और बत्याने लग गयी थी और इस परसंग को जैसे भूल ही गयी थी, बोली " का रे?"

मैंने कहा, "अरे मौसी बताओ ना इस बगल वाली मैम के बारे में?

"अरे इब तक तूं वोही बात मन में सोच रहा है का? देख रही हो बहिन अपने छोरे की बुधी को? यह बड़ा हो कर सच में मैम ब्याह लायेगा। देख लेना तुम।" मौसी ने बीजी को हाथ पर हाथ मारते कहा।

बीजी ने कहा " हुंह..लायेगा यह मैम। अगर यह मैंम बैम लाया ना तो उस का झोंटा पकड़ कर बाहर ना कर दूँगी उसे? मैं अपने चौंके में भला मुर्गी-मछली लाने दूँगी? "

"अगर छोरे ने पसंद कर ली तो तूं क्या करेगी बहिना?"

बीजी ने कहा "अरे ऐसे कैसे उसे पसंद आ जायेगी? ऐसा किया तो ऐसे लड़के को भी निकाल दूँगी मैं घर से। विलायती बहू की जी -हुजूरी करना मेरे वश का रोग नहीं। हे मैया, रक्षा करना मेरी अम्बे माँ। "

मौसी कहने लगी " अरे इस मैम का सिंगार-पटार तो तो देखो, बाप रे बाप। अरे तुम जानत है के पहले हम यहाँ रहा करें वहाँ पर भी एक मैम होवे थी। अरे दैया का बताऊँ उस के बारे में इब? इब तो सब अलग थलग हो गयेवे। विल्याती बीबी के प्यार में उस के मरद ने अपनी घर तक को गिरबी रख दीया था। इब तो मने सुना है के वो मैम उस को लात मार कर अपने मुल्क को चली गयी।"

बीजी ने कहा " अरे कहीं सांप को वो भी केले और दूध पिला कर पाला जा सकता है?"

मेरी समझ में यह सब नहीं आ रहा था बस मेरी तो बड़ी इच्छा हो रही मिस्सी दीदी को देखने की। सब से उन का जिक्र सुन कर मिस्सी दीदी को देखने को बैचैन हो उठा। पर मुझे बड़ी झिझक हो रही थी मिस्सी दीदी के पास जाने में। सिर्फ़ दूर से ही एक दो दफा हास्पिटल के लिए ड्यूटी के लिए जाते ही देखा था।

एक दिन पापा हॉस्पिटल में ड्यूटी पर गए थे और बीजी किताब पढ़ते पढ़ते सो गयी थी। मैं धीरे से घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया और सीधा मिस्सी दीदी के घर चला गया। मुझे ना जाने कैसा डर सा लग रहा था। और मैंने पैर वापस जाने के लिया बढाये ही थे के पीछे से किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और एक आवाज़ आयी " व्हाट नाऊँ ?"

शेष अगले भाग में..पर्तीक्षा के लिए धन्यबाद..

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