Monday, December 8, 2008

क्या कहें?

मय जो हम ने मांगी साकी से पिलाई न गयी।
सामने जाम था प्यास हम से बुझाई न गयी।

क्या कहें अब जुबां ही चुप सी रहती है,
क्या करें बात, बात हम से बनायी न गयी।

जब भी गर्दन झुकाए तेरे आस्तां से गुज़रे हम,
आँख उठायी तो सही, पर आँख मिलाई न गयी।

माना के तुम भूल गए, मुहब्बत की सभी कसमे,
क्या करें तेरी याद, बस हम से भुलाई न गयी।

जानते हैं तुम्हे मिल जायेंगे राही और डगर में,
हमी से कोई सूरत, इस दिल में बसाई न गयी।

चमन से 'आशु' गुजरने का अब दिल नही करता,
वोह चोट लगी है हम को, जो किसी से खाई न गयी।

1 comment:

"अर्श" said...

badhiya ghazal likhi hai aapne ..bahot khub dhero badhai....jari rahe.....

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