Monday, May 26, 2008

ग़ज़ल

मुझे तेरी फितरत देख कर रोना ही आ गया!
अब मुझे हर हाल मे खुश होना ही आ गया!

ज़रूरत नही हैं अब मुझे किसी के सहारे की,
अश्कों में ख़ुद अपने को डुबोना ही आ गया!

क्यों रोये आख़िर कोई मेरी दास्तान सुन कर,
अक्सर अपने हाल पर ख़ुद रोना ही आ गया!

शुक्रिया तेरा ऐ दोस्त तूने जीना सीखा दिया,
अब तो मुझे भी ग़मों में खोना ही आ गया!

वक्त-ऐ-हिज़र नही करूंगा मैं कोई भी शिकवा
खुशियों के हार मुझे अब पिरोना ही आ गया !

5 comments:

Alpana Verma said...

bahut badhiya! kya baat hai!

Anonymous said...

सुन्दर अति सुन्दर।

बालकिशन said...

बधाई.
बढ़िया गजल लिखी आपने.
"वक्त-ऐ-हिज़र नही करूंगा मैं कोई भी शिकवा
खुशियों के हार मुझे अब पिरोना ही आ गया !"
अति सुंदर.

Udan Tashtari said...

बढ़िया है, लिखते रहिये.

आशु said...

अल्पना जी, सुशील जी, बालकृशन जी व समीर जी,

आप सब का मेरी हिम्मत बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्याबाद. आप ऐसे ही मेरी कोशिश को अपने शब्दों से प्रेरित करते रहें

अशोक 'आशु''

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